प्रयत्न से सफलता की कहानी | बूंद बूंद से ही घडा भरता है
प्रयत्न से सफलता की कहानी:
जीवन मे कभी ऐसी परेशानी आती हैं जिसे हम सब मिलकर ही खत्म कर सकते हैं तो उसमे हम सभी का योगदान होना जरुरी होता हैं लेकिन हम यह सोचकर अपना योगदान नही देते कि मेरे ना करने से क्या फर्क पड़ता हैं। आज की प्रेरणादायक कहानीं यही बात सीखाती हैं कि हमारे एक के ना करने से क्या फर्क पड़ता हैं।
बूंद बूंद से ही घडा भरता है
एक बार एक राजा जो अपने राज्य मे फैली एक बीमारी से बहुत परेशान था। रोज बीमारी से राज्य मे मरीजों की संख्या बढती जा रही थीं। राजा ने बहुत दूर से बडे बडे वैध को बुलाया लेकिन किसी को उस बिमारी के बारे मे कोई पता नहीं चल सका। राज्य मे बिमारी का प्रकोप इतना ज्यादा हो चुका था कि राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। एक दिन राजा के दरबार मे एक साधु आया और राजा से कहने लगा कि आपके राज्य मे जो बिमारी फैली हुई हैं उसका मैं एक समाधान बताना चाहता हूँ। राजा ने कहा कि इस बिमारी को दुनिया के सबसे बडे वैध सही ना कर सके उसे आप कैसे सही कर सकते हो। साधु ने कहा कि हा मैं इस बिमारी को सही कर सकता हूँ लेकिन इसके लिए राज्य के सभी नागरिकों को अपना योगदान देना होगा। ये कोई अकेले इंसान से ठीक होने वाली बिमारी नही हैं। राजा ने साधु से कहा ठीक है आप समाधान बताए मेरे राज्य के सभी नागरिक अपना अपना योगदान देगें और इस बिमारी से जंग भी जीतेंगे। साधु ने कहा कि आपके राज्य मे एक कुआँ हैं सभी को अपनी अपनी तरफ से दस दिन तक रात मे जाकर कुएँ मे दूध डालना हैं और ऐसा करने से यह बिमारी खुद ही इन दस दिनों मे ठीक हो जायेगी। राजा ने ऐसा सुनकर अपने दरबार मे एक एक दावत रखी जिसमे अपने राज्य के सभी लोगों को बुलाया गया।
संघर्ष से सफलता की कहानी
दावत के दौरान राजा ने सभी लोगों से अपील की कि राज्य मे जो भयंकर बिमारी फैली हुई है इसे खत्म करने के लिए आप सभी को एक छोटा सा कार्य करना है। यह सुनकर सभी लोग पूछने लगे कि राजा साहब आप बताए हमे क्या करना है। राजा ने कहा कि आप सभी को राज्य मे स्थित कुआँ मे दस दिन तक रात होने पर दूध डालना हैं। यही इस बिमारी का ईलाज हैं। अन्यथा हम सब इस बिमारी की चपेट मे आ जाएंगे और एक दिन सभी मारे जाएंगे। सभी लोगों ने राजा से वादा कर लिया कि हम सभी जरूर कुएँ मे दूध डालकर आएंगे। और इस बिमारी को जड़ से खत्म कर देगें। सभी लोग अपने अपने घर चले गये। रात हुई सभी लोग कुएँ मे दूध डालने के लिए कुएँ के पास आने लगे और दूध डालने लगे। पूरी रात लोगों टा आना जाना लगा रहा। सुबह होने ही वाली थी किसी ने एक बुढिय़ा को कुएँ की तरफ जाते देखा और उसके हाथ मे जो बाल्टी थी उसमे देखा कि दूध की जगह पानी भरा हुआ है। बुढिया कुएँ के पास जाकर चारों तरफ देखकर छुपके से बाल्टी का पानी कुएँ मे डाल दिया और वापस अपने घर आ गयी। ऐसा होते हुए दस दिन बीत गये लेकिन बिमारी कम नही हुई बल्कि और ज्यादा हो गयी। दस दिनो के बाद फिर से वही साधु राजा के दरबार मे आया। साधु को देखकर राजा ने सधु से कहा कि आप ने कहा था कि दस दिनो तक कुएँ मे दूध डालने से बीमारी ठीक हो जाएगी हम सभी ने ऐसा ही किया हैं लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ बल्कि और ज्यादा खतरनाक स्थिति बन गई हैं। साधु कुछ देर चुप रहा फिर राजा से बोला कि आपको सही पता है कि सभी लोगो ने ईमानदारी से कुएँ मे दूध डाला है। राजा कुछ देर तक सोचता रहा इतने मे एक व्यक्ति बोला कि राजा साहब मैंने एक बुढिय़ा को कुएँ मे दूध की जगह पानी डालते हुए देखा था। इसलिए ही बिमारी सही नही हुई हैं।
राजा ने अपने सिपाहियों से कहा कि उस बुढिय़ा को पकडकर लाया जाये जिसने कुएँ मे दूध न डालकर पानी डाला था और उसकी वजह से ये भयंकर बिमारी ठीक नही हुई। उस बुढिय़ा को राजा के पास लाया गया। राजा ने पूछा कि तुमनें कुएँ मे दूध न डालकर पानी क्यो डाला। बुढिय़ा राजा से कहने लगी राजा साहब जब सब दूध डाल रहे थे तो मैने सोचा कि मेरे एक के दूध ना डालने से क्या फर्क पडेगा और सभी ने तो दूध डाला ही है। इसलिए मेने कुएँ मे पानी डाल दिया। इतना सुनकर राजा और साधु दोनो कुएँ के पास जाने लगे ये देखने के लिए कि क्या सभी ने दूध डाला हैं या नहीं। कुएँ के पा जाकर देखा तो पूरा कुआँ पानी से भरा हुआ था उसमे दूध की एक बूद भी नही थी क्योंकि सभी ने उस बुढिय़ा की तरह ही सोचा था कि बाकी सब तो दूध डाल ही रहे है मेरे अकेले दूध ना डालने से क्या फर्क पडता हैं।
सागर इतना बडा हैं कि उसमे से एक बूद निकाल ली जाये तो उसपर कोई फर्क नही पडेगा लेकिन एक एक बूंद करके सागर से पानी निकालते रहे तो एक दिन ऐसा आएगा कि सागर भी सूख जाएगा। क्योंकि बूंद बूंद से ही सागर बनता हैं।
यह प्रेरणादायक कहानीं हमे सिखाती है कि हम सब कहते रहते हैं कि ये गलत है, वो गलत हैं, इसमे ये बदलाव होने चाहिए, उसमें ये बदलाव होने चाहिए। मगर जब कुछ करने की बारी आती हैं तो कोई आगे नही आता क्योंकि सब यही सोचते हैं कि बाकी सभी तो कर ही रहे होगें मेरे अकेले के ना करने से क्या फर्क पडेगा। और नतीजा कुछ नही होता जैसा पहले था वैसा ही रहता है।
ऐसा ही देश मे कोरोना वायरस के विरुद्ध लडाई मे हो रहा हैं। सभी लोग यह मानकर rules follow नही कर रहे हैं कि मेरे अकेले के rules follow ना करने से क्या फर्क पडेगा। लेकिन जब सभी ऐसा ही सोचने लगेंगे तो बहुत फर्क पडेगा जिससें स्थिति बेहद खराब हो सकती है इसलिए सभी को अपने उपर जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि मुझे ये करना है तो करना है मुझे दूसरो के भरोसे नही रहना हैं।
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