धर्मपाल गुलाटी MDH मसाला के मालिक की सक्सेस स्टोरी
महाशय धर्मपाल गुलाठी के संघर्ष की कहानी |
महाशय धर्मपाल गुलाठी कौन थे?
MDH मसाला कम्पनी के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाठी एक ऐसे व्यक्ति थे जिनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उन्होने अपने जीवन मे कभी हार नही मानी और हमेशा महनत करते रहे और आज पूरी दुनिया मे वे एक प्रेरणादायक के रूप से जाने जाते हैं
महाशय धर्मपाल गुलाठी कौन थे?
MDH मसाला कम्पनी के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाठी एक ऐसे व्यक्ति थे जिनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उन्होने अपने जीवन मे कभी हार नही मानी और हमेशा महनत करते रहे और आज पूरी दुनिया मे वे एक प्रेरणादायक के रूप से जाने जाते हैं
आज धर्मपाल गुलाठी की पूरी दुनिया मे एक अलग पहचान हैं। उनकी इस पहचान की वजह हैं उनका अपना मसालों 'MDH' का बिजनेस। इस बिजनेस को इनसे पहले कोई नही मानता था कि मसालों का भी इतना बड़ा व्यपार किया जा सकता हैं। कोई नहीं सोचता था कि मसालो का बिजनेस इतना बड़ा हो सकता है जो पूरी दुनिया मे अपनी छाप छोडे। आज मसालो की बात आती है तो सबसे पहले नाम MDH मसालें का ही आता है। और इस नाम के पीछे धर्मपाल गुलाठी की लग्न व कडी महनत का नतीजा है।
धर्ममपाल गुलाटी का जन्म
धर्मपाल गुलाठी का जन्म सन 1923 मे सियालकोट मे हुआ था। जो अब पाकिस्तान मे है। उनके पिता का नाम चुन्नीलाल गुलाठी था।
चुन्नीलाल गुलाठी एक साधारण व्यक्ति थे। धर्मपाल गुलाठी जी का मन पढाई लिखाई मे बिल्कुल भी नहीं लगता था। उनके पिता जी ने काफी कोशिश की उन्हें पढाने की लेकिन वे पांचवीं क्लास से ही स्कूल जाने से रूक गये।
MDH Masala Owner Dharampal Gulati Biography & Success Story
मसालों का ही काम क्यों चुना
पिताजी ने उन्हे, कई काम सिखाने की भी कोशिश की लेकिन कुछ दिन करने के बाद वह काम करने से मना कर देते। धर्मपाल जी की शादी भी हो चुकी थी। उनके सिर पर जिम्मेदारियां भी आ गयी थी। सियालकोट तीखी लाल मिर्च की खेती के लिए मशहूर था। वहा मसालो की अच्छी खेती होती थी। इसी को ध्यान मे रखते हुए। पिताजी जी ने जी के लिए एक छोटी दुकान खोली। जिसका नाम Mahashian Di Hatti (MDH) रखा। दुकान पर धर्मपाल गुलाठी जी भी मसाले पिसा करते थे। दुकान धीरे धीरे अच्छी चलने लगी। कुछ दिनो तक उन्होंने ये व्यवसाय किया।
भारत मे महाशय जी कहां आए?
समय बीतता गया और वो दिन भी आ गया जब सन 1947 मे भारत और पाकिस्तान का बटवारा हो गया। इनका परिवार सियालकोट से पंजाब के अमृतसर मे आकर रूके। अमृतसर से फिर इनका परिवार दिल्ली आकर रहने लगा। दिल्ली आकर इनकी आर्थिक हालात खराब थे। इन्होंने छोटे मोटे कई काम किये। मगर किसी भी काम को वे ज्यादा दिन तक नहीं कर सके।
महाशय जी को तांगा क्यों चलाना पडा?
महाशय जी ने कई काम किये जिनमें एक काम तांगा चलाना भी था। उनके आर्थिक हालात खराब हो गये इसलिए उन्होंने तांगा चलाने का काम भी किया जिससे उनके पास कुछ पैसे आने शुरू हो गए। मगर उनका मन इस काम मे भी नही लगा।
लेकिन तागे से उन्होंने इतने रूपये इकट्ठा कर लिए थे। जिनसे फिर से अपने मसालो का काम शुरू किया। और दिल्ली मे मसाले की एक छोटी दुकान खोली उसका नाम भी "Mahashian Di Hatti सियालकोट वाले" रखा। इसके बाद इन्होंने पीछे मुडकर नही देखा। और दिन पर दिन इनका काम बहतर होता गया। पहले ये अपने मसाले खुद पीसा करते थे। फिर ये अपने मसाले को अलग चक्की पर पिसवाने लगे। और इसमे अच्छा मुनाफा होता गया। कुछ दिनो के बाद इन्होंने अपनी अलग मसालों की फैक्ट्री खोल ली।
MDH मसालें की पहुच कहां तक हैं?
धीरे धीरे इनके मसाले की महक पूरे भारत मे फैलने लगी। मसालों की क्वालिटी अच्छी होनेके कारण इनके मसाले भारत से भी बाहर Export होते है। MDH के मसाले दुनिया के करीब 100 देशो मे export होते हैं। MDH के करीब 60 से भी ज्यादा Products है। MDH के सबसे मशहूर मसालों मे 'देग्गी मिर्च', 'चाट मसाला' और 'चना मसाला' है।
Mahashian Di Hatti (MDH) के प्रबंधक व Brand Ambassador खुद महाशय धर्मपाल गुलाठी जी ही हैं।
महाशय जी की मृत्यु
98 वर्ष की उम्र मे महाशय धर्मपाल जी ने 03 दिसंबर 2020 को अंतिम साँस ली। साहस और संंघर्ष भरे जीवन के लिए वे हमेशा याद रहेगें।
दोस्तों महाशय धर्मपाल गुलाठी जी की तरह हमे भी हमेशा संघर्ष करते रहना चाहिए। लग्न से महनत करने से सफलता जरूर मिलती हैं।
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